Monday, December 31, 2012

विदेशी दासता की पहचान है जनवरी का नया साल



-विनोद बंसल
जनरी के नजदीक आते ही जगह-जगह जश्न मनाने की तैयारियां प्रारम्भ हो जाती हैं। करोडों रुपए का खर्चा नव वर्ष की तैयारियों में खर्च हो जाता है। होटल, रेस्तरॉ, पब इत्यादि अपने-अपने ढंग से इसके आगमन की तैयारियां करने लगते हैं। हैप्पी न्यू ईयरके बैनर, होर्डिंग, पोस्टर व कार्डों के साथ दारू की दुकानों की भी चांदी कटने लगती है। कहीं कहीं तो जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाऐं दुर्घटनाओं में बदल जाती हैं और मनुष्य मनुष्यों से तथा गाड़ियां गाडियों से भिडने लगते हैं। रात-रात भर जागकर नया साल मनाने से ऐसा प्रतीत होता है मानो सारी खुशियां एक साथ आज ही मिल जायेंगी। हम भारतीय भी पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्कृतिक मर्यादाओं को तिलान्जलि दे बैठते हैं। पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया। क्या यही है हमारी संस्कृति या त्योहार मनाने की परम्परा।
एक जनवरी से प्रारम्भ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया। भारत में ईस्वी सम्वत् का प्रचलन अग्रेंजी शासकों ने 1752 में किया। अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे विश्व के अनेक देशों ने अपनाया। 1752 से पहले ईस्वी सन् 25 मार्च से शुरू होता था किन्तु 18वीं सदी से इसकी शुरूआत एक जनवरी से होने लगी। ईस्वी कलेण्डर के महीनों के नामों में प्रथम छ: माह यानि जनवरी से जून रोमन देवताओं (जोनस, मार्स व मया इत्यादि) के नाम पर हैं। जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीजर तथा उनके पौत्र आगस्टस के नाम पर तथा सितम्बर से दिसम्बर तक रोमन संवत् के मासों के आधार पर रखे गये। जुलाई और अगस्त, क्योंकि सम्राटों के नाम पर थे इसलिए, दोनों ही इकत्तीस दिनों के माने गये अन्यथा कोई भी दो मास 31 दिनों या लगातार बराबर दिनों की संख्या वाले नहीं हैं।
ईसा से 753 वर्ष पहले रोम नगर की स्थापना के समय रोमन संवत् प्रारम्भ हुआ जिसके मात्र दस माह व 304 दिन होते थे। इसके 53 साल बाद वहां के सम्राट नूमा पाम्पीसियस ने जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़कर इसे 355 दिनों का बना दिया। ईसा के जन्म से 46 वर्ष पहले जूलियस सीजन ने इसे 365 दिन का बना दिया। सन् 1582 ई. में पोप ग्रेगरी ने आदेश जारी किया कि इस मास के 04 अक्टूबर को इस वर्ष का 14 अक्टूबर समझा जाये।आखिर क्या आधार है इस काल गणना का? यह तो ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होनी चाहिए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नवम्बर 1952 में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। किन्तु, तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कलेण्डर को ही सरकारी कामकाज हेतु उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कलेण्डर के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
ग्रेगेरियन कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3582 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष, यहूदी 5768, मिस्त्र की 28671, पारसी 198875 तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़, 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्रचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गयी है।
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है। किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिध्दांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमश: 45 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त पूछते हैं। और तो और, देश के बडे से बडे राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुध्द रूप से विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है। भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देश प्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे हुए हैं। यह वह दिन है जिस दिन से भारतीय नव वर्ष प्रारम्भ होता है। यह सामान्यत: अंग्रेजी कलेण्डर के मार्च या अप्रेल माह में पडता है। इसके अलाबा जापान फ़्रांस, थाईलेण्ड, इत्यादि अनेक देशों के नव वर्ष भी इसी दौरान पडते हैं। आइये इस दिन की महानता के प्रसंगों को देखते हैं :-
ऐतिहासिक महत्व
  • वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
  •  प्रभु श्री राम, चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य व धर्म राज युधिष्ठिर का राज्यभिषेक राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
  •  शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है।
  •  प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन का श्री राम महोत्सव मनाने का प्रथम दिन।
  •  आर्य समाज स्थापना दिवस, सिख परंपरा के द्वितीय गुरू अंगददेव जी, संत झूलेलाल व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डा0 केशव राव बलीराम हैडगेवार का जन्मदिवस।
प्राकृतिक महत्व
  •  वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
  •  फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
  •  ज्योतिष शास्त्र के अनुसर इस दिन नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये शुभ मुहूर्त होता है।
क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ? मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का ही नतीजा है कि आज हमने न सिर्फ़ अंग्रेजी बोलने में हिन्दी से ज्यादा गर्व महसूस किया बल्कि अपने प्यारे भारत का नाम संविधान में इंडिया दैट इज भारत तक रख दिया। इसके पीछे यही धारणा थी कि भारत को भूल कर इंडिया को याद रखो क्योंकि यदि भारत को याद रखोगे तो भरत याद आएंगे, शकुन्तला व दुश्यन्त याद आएंगे, हस्तिना पुर व उसकी प्राचीन सभ्यता और परम्परा याद आएगी।
आइये! विदेशी दासत्व को त्याग स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
पता : 329, संत नगर, पूर्वी कैलाश, नई दिल्ली-110065. चल दूरभाष : 9810949109

Sunday, December 30, 2012

Dry Delhi & Moral education Must:VHP condolences & Protests at Dozen places in Delhi



New Delhi. December 30, 2012. Vishwa Hindu Parishad(VHP) today demanded compulsory moral education and complete liquor free country to stop such heinous crimes against women and make citizens safe. Expressing his deep sorrow and paying rich tributes to the young lady who  became victim of the drunken in the national capital, the national spokesperson of VHP advocate Prakash Sharma said that country should be free from liquor and the moral education must be made mandatory in all schools of the country to avoid any such crime in future. He was speaking in Sanatan Dharm Mandir of GK-2 in south Delhi. VHP today organized condolence meetings at dozen places in Delhi.
According to shri Vinod Bansal, the media chief of VHP Delhi, today, we have paid rich tributes through havan satsang, Keertan & prayer meetings at different parts of Delhi. Many socio-religious organization, RWAs, Temple management committees etc have taken part in such meets. All present have demanded that our country should be made free from liquor and rich of moral education & values to save the nation from such menaces.
 The programs organized at Jyoti colony, Mayur Vihar Phase-2 & New Ashok Nagar of East Delhi, Chhatar pur, Pul Prahalad pur & Kalkaji in south Delhi and Nand Nagari, Mahalaxmi Nagar & Palam of West Delhi had large gathering. The state vice presidents shri Mahaveer Prasad, Gurdeen Prasad, Deepak kumar, Ujagar Singh & Brij Mohan Sethi, secretary general Satyendra Mohan, secretary Ram Pal Singh, organizing secretary Karuna Prakash, Rashtra Prakash and Manish Rai were amongst those who participated and addressed the large gatherings, Bansal added.

पूर्ण नशाबन्दी व अनिवार्य नैतिक शिक्षा ही सच्ची श्रद्धांजलि : विहिप






नई  दिल्ली, दिसम्बर 30,2012. देश में लगातार बढ रही महिला उत्पीडन की घटनाओं पर विराम लगाने के लिए विश्व हिन्दू परिषद ने नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता और देश में पूर्ण नशा बन्दी को अनिवार्य कदम बताया है। विहिप द्वारा राजधानी दिल्ली के आठ विभिन्न स्थानों पर बलात्कार की शिकार युवती की मृत्यु पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए दिवंगत आत्मा की शांति व व्यवस्था परिवर्तन हेतु हवन-यज्ञ, सत्संग व कीर्तन का आयोजन किया गया। दक्षिणी दिल्ली के जीके-2 स्थित श्री सनातन धर्म मन्दिर में हिन्दू हित चिन्तकों व समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों के समक्ष दिल्ली में घटी शर्मनाक घटना का जिक्र करते हुए विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता एडवोकेट प्रकाश शर्मा ने कहा कि देश में अनिवार्य नैतिक शिक्षा, पूर्ण नशा बन्दी व त्वरित न्याय व्यवस्था से ही इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सकता है।
विहिप दिल्ली के मीडिया प्रमुख श्री विनोद बंसल ने बताया कि देश की राजधानी को शर्मसार करने वाली घटना पर छोभ व शोक व्यक्त करने, दिवंगत आत्मा की शांति व व्यवस्था परिवर्तन हेतु आवाज बुलन्द करने के लिए आज दिल्ली के दर्जन भर स्थानों पर विहिप की प्रेरणा से हिन्दू हित चिंतकों द्वारा हवन-कीर्तन, सत्संग-भजन व शोक सभाओं का आयोजन किया गया। पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फ़ेस-2, न्यू अशोक नगर, शिव विहार, नन्द नगरी व मण्डावली, पश्चिमी दिल्ली के पालम तथा दक्षिणी दिल्ली के महरोली, पुल प्रहलाद पुर व कालकाजी सहित अनेक स्थानों पर आयोजित इन कार्यक्रमों में हजारों लोगों ने भाग लिया। उपस्थित जन समूह ने पुलिस, प्रशासन व सरकारी मशीनरी की पूर्ण विफ़लता पर शान्ति पूर्ण विरोध दर्ज कराते हुए व्यवस्था परिवर्तन की मांग दोहराई।
   विहिप के प्रान्त उपाध्यक्ष श्री महावीर प्रसाद, श्री दीपक कुमार, सरदार उजागर सिंह, बृज मोहन सेठी व श्री गुरदीन प्रसाद रुस्तगी, महा मंत्री श्री सत्येन्द्र मोहन, मंत्री श्री राम पाल सिंह, सगठन मंत्री श्री करिणा प्रकाश, प्रान्त मातृ शक्ति संयोजिका श्रीमती सिम्मी आहूजा, दुर्गा वाहिनी संयोजिका श्रीमती संजना चौधरी व मीडिया टोली के श्री मनीश राय सहित अनेक गणमान्य लोगों ने सम्बोधित किया।
सभी ने एक स्वर से आवाज बुलन्द की कि केन्द्र व दिल्ली की सरकार अपने निजी स्वार्थों को सीमा में रखकर प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करें अन्यथा सरकारी निकम्मेपन का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पडेगा। लोगों में इस बात पर भी एक राय थी कि यदि राजधानी में कानून व व्यवस्था की स्थिति तथा विभिन्न विभागों में तालमेल ठीक होता तो न सिर्फ़ युवती की जान वल्कि उसकी इज्जत को भी बचाया जा सकता था।