राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री
को पत्र भेज कहा कानून की जगह समलैंगिकों को ठीक किया जाए
नई दिल्ली, दिसम्बर 15, 2013। जब से यूपीए सरकार ने केन्द्र
की बागडोर सम्भाली है भारतीय संस्कृति पर लगातार हमले तेज हुए हैं। पहले लिव इन
रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता उसके बाद सहमति से यौन संबन्ध बनाने के उम्र में कटौती
और अब समलैंगिकता जैसी जघन्य सामाजिक विकृति को कानूनी स्वीकृति दिए जाने की जो
पहल चल रही है उससे भारतीय सांस्कृतिक मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं। विश्व हिन्दू
परिषद दिल्ली के महामंत्री श्री सत्येन्द्र
मोहन ने दिल्ली में महिलाओं के विरुद्ध लगातार बढती उत्पीडन की घटनाओं पर गहरी चिन्ता
व्यक्त करते हुए मांग की है कि केन्द्र सरकार समलैंगिकता पर माननीय सर्वोच्च
न्यायालय के आदेश में अडंगा डालने की बजाय इन भटके हुए नागरिकों का इलाज कराए और देश
में अनिवार्य नैतिक शिक्षा व पूर्ण शराब बन्दी लागू कर महिलाओं की सुरक्षा और हमारे
सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा में सहभागी बने। विहिप ने आज इस सम्बन्ध में एक पत्र भी
भारत के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति को भेज कर कहा है कि आवश्यकता समलैंगिकों के इलाज की है न कि इसके लिए कानून में बदलाव की।
पत्र की प्रति
मीडिया को जारी करते हुए विहिप दिल्ली के मीडिया प्रमुख श्री विनोद बंसल ने बताया
कि ग्यारह दिसम्बर को जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय का समलैंगिकता को पुन: अपराध की
श्रेणी में रखने सम्बन्धी निर्णय आया तभी से पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित फ़ाइव
स्टार राजनेता तथा कथित मानवाधिकार वादियों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं।
ये सभी भारत में आयातित इस रोग का इलाज कराने की बजाय उसे कानूनी जामा पहना कर देश
की संस्कृति को तहस-नहस करने में जुट गये हैं। राष्ट्रपति व प्रधान मंत्री को भेजे
अपने पत्र में विहिप ने मांग की है कि पहले लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता
उसके बाद सहमति से यौन संबन्ध बनाने के उम्र में कटौती से महिला उत्पीडन की घटनाएं
तीव्र गति से बढी हैं। अब समलैंगिकता जैसी जघन्य समाजिक विकृति को स्वीकृति दिए
जाने की जो पहल चल रही है उससे हमारी सांस्कृतिक मर्यादाएं तार-तार हो जाएंगी अत:
विकृतियों को स्वीकृति दिए जाने की बजाय अनिवार्य नैतिक शिक्षा व पूर्ण शराब बन्दी
लागू कर महिलाओं की सुरक्षा और हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा की जाए।
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